आख़िर क्यूं
आख़िर क्यूं,
बंदिशे भी हज़ार लगाते हो,
और करीब होने का एहसास भी दिलाते हो तुम,
आख़िर क्यूं
भीड़ मे शोर मचाते हो,
और एकांत मे चूप हो जाते हो तुम,
आख़िर क्यूं,
इतने पहरे लगाकर,
खूदको ही दर्द देते हो तुम,
मेरा होना गलत है तो,
सही क्या है बतलाते क्यूं नहीं हो तुम,
आख़िर क्यूं,
सजा बढ़ाते हो,
चू्पी तोड़ते क्यूं नहीं हो तुम,
आख़िर क्यूं
ये बंदिशे मिटाते नहीं हो तुम ।
Babita
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