अकेलेपन का सत्य!
आप अपनी कहानी के मेन लीड होते हो !
पर इसका एहसास सब कुछ खो देने के बाद होता है, बचपन से हम अपने माता- पिता,भाई- बहन, चाचा-चाची,और न जाने कितने ही रिश्ते और रिश्तेदारों के साथ रह रहे है,जो भरे पड़े है। पर कुछ लोग जन्म से ही अकेले रहते है,पर वो भी दोस्त बना लेते है । पर इन सब बातों का कहने का अर्थ केवल ये है कि हम भले आते इस दुनिया में अकेले है, जाते भी अकेले है,पर कोई कितना भी कहे कि मैं तो अपना सारा जीवन अकेले ही बिताना चाहता हूं,या बिताया है । तो मुझे ये मिथ्या प्रतीत होती है, अब मान लीजिए कोई व्यक्ति शादी नहीं करता । पर उसके पास धन बहुत है, और सारी सुख सुविधाएं भी, खाना बनाने के लिए महाराज, अन्य कामों के लिए सहायक,ड्राइवर आदि। आधे से ज्यादा समय ऑफिस के कामों में बीता। तो फिर आप अकेले कैसे हुए ? इतने सारे लोगों के बीच अगर कोई ये कहे कि मैं मन से अकेला हूं । तो ये भी गलत है पूरे दिन हमारा मन हमें गलत या सही, चीजों तक ले जाता है। तो अकेलापन कैसा ?
मन एक ऐसी चीज है जो आकाश पे पहुंचा के पाताल में गिरा देता है।आप में से कितने लोगों ने ये अनुभव किया है मुझे पता नहीं,पर मेरे साथ ऐसा हमेशा हुआ है,जिस चीज के साथ में अधिक खुश हूं! अगले ही पल उसी चीज के कारण चिंतित भी होती हूं और रोती भी हूं। कई लोग कहते है लड़कियों के आंसू दिखावटी है,पर जब मन पे चोट लगी हो तो आंसू दिखावटी कैसे? वैसे तो में किसी के सामने नहीं रोती और रोती भी उनके सामने हूं जो मुझे अपने लगते है । उन लोगों के पास नहीं जो मेरी व्यथा को कही और बया कर दे। वैसे तो मुझे किसी पे आज तक भरोसा हुआ नहीं! शायद इतने धोखे खाए है इसीलिए। परिवार में भी धोखे होते है जिन भाई- बहनों को आप अपना समझते हो । वो विवाह के बाद बदल जाते है, 25-30 साल बीतने के बाद जो भाई - बहन एक दूसरे को समझ न पाए, तो भरोसा कैसा ?
जब दो लोगों के बीच कहा - सुनी होती है तो बचपन की तरह सब बैठ कर सच का पता क्यों नहीं करते,एक दूसरे की बाते आमने- सामने रखते क्यों नहीं है? किसी के पराए घर से आने या किसी के पराए घर जाने से रिश्तों का बंटवारा कर देना,आज के समाज का वीवीआईपी कल्चर है। जिस सोसाइटी और स्टेटस को लेकर आज आप खुदको बड़ा और सामने वाले को छोटा समझ रहे है। उसका अंत श्मशान में होता, मैंने बचपन से लेकर अपनी मां के मृत्यु तक उनको देखा है। हां,icu के बेड पे,जिस तरह मेरा हाथ उन्होंने पकड़ा था। जैसे वो अब ठीक हो जाएंगी पूरी कोशिश कर रही हो अपने अंत को रोकने की। पर सत्य तो ये है,हर व्यक्ति को जाना है आज नहीं तो कल।
पर जो लोग रिश्ते में रहकर ये कहते मैं तुम्हे छोड़ दूंगा / दूंगी, अर्थात् वो व्यक्ति अपने अहम को ज़्यादा महत्व दे रहा है। अहम को महत्व देने वाला व्यक्ति हमेशा मैंने ये किया वो किया, चाहे कोई काम हो चाहे कुछ और वो "मैं" को अधिक प्रधानता देता है। और उसे ये लगता है,की ये संसार भी वही चला रहा है । पर सत्य इससे परे है,किसी के कुछ करने या न करने से,न समय रुकता है और न कार्य । सब चीज़ उसी प्रकार से होता है जैसे पहले होता था। आज आप जहां है,पहले कोई और था,आगे कोई और होगा, ये क्रम है जो निरंतर चलता रहेगा। सबके साथ रहे या अकेले जाना तो सत्य है जीवन का सत्य । अब आप इसे ईर्ष्या में गुजरिया ये प्रेम में,लेकर तो आप अपना कर्म जायेंगे जो ईश्वर से नहीं छुपा हैं,क्योंकि आप सांसारिक जीवन में झूठ,प्रपंच आदि कर सकते हो पर ईश्वर के समक्ष नहीं जो हर जगह है। आप में है, मुझमें है, हर कण,हर जीव में है ।
बाकी आप अकेले रहिए या संसार में ! जाना तो अकेले ही है!
Babita 💕
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