कुछ पन्ने बीते कल के! 1
समस्याएं!
ऐसा कत्यी नहीं है की आप इस पूरे संसार मे सबसे ज्यादा परेशान है, कुन्ठीत,य़ा अकेले है,एक गुब्बार से भरे हुए है ! ये गुब्बार आप अपने भीतर लिए घुम रहे है ..........एक झूठी सी मुस्कान लिए ,जिसे आप दूसरो के सामने ऐसे प्रकट करते है मानो आपके जैसा सुखी कोई ना हो । ऐसे न जाने कितने ही लोग है ये केवल मेरे जीवन की कहानी नहीं है भतेरे लोग है पूरे संसार मे ......जो मुझ जैसी और मुझसे भी भिन्न - भिन्न परेशानियों से घीरे है । मुझे ये तो नहीं पता की वे इन परेशानियो का निवारण कैसे करते है,पर हाँ ये अवश्य है की हम एक पुरूष प्रधान संसार मे जीवन य़ापन कर रहे है ज़हा उनकी बात को आज भी सर आँखो पर रखा जाता है ,उन्हे कहाँ रहना है ,क्या पसंद है , क्या न पसंद है सब चीज .......गलत कुछ नहीं है । पर गलत सोच की है एक स्त्री स्वयं का कुछ नहीं कर सकती,क्यूंकी वो कुछ कर ही नहीं सकती,मैं ऐसे स्थान पे हूँ जिसे नवाबो का शहर कहाँ जाता । ये कोई नयी बात नहीं एक फौजी की बेटी हो तो ये सारे आम चीजे है । बचपन से ही पहले मेघालय,लोहित पूर,अगरताला,दिल्ली आदि पिता के साथ घुमते रहे । पर शुरू से ही मुझे हर छोटी सी चिजो से लगाव हो जाता था,मैं हर किसी की तरह नहीं थी ....।एक स्थान से दूसरे स्थान पे जाना मेरे लिए अक्सर दुख दायी रहा क्यूंकी मेरा जुड़ाव हमेशा उस स्थान,वक्ती या चिजो से हो जाता था । शायद मेरे शांत रहने का कारण ये भी था,पर मैं किसी से खुल के बात नहीं करती थी ,क्यूंकी मुझे खोने का डर साथ रहता था । बाते,मुलकाते,खेल - कुद फिर जुदाई आम था मेरे लिये,मैं क्या चाहती हूँ ये किसी ने जनना नहीं चाहा ! वैसे भी एक बच्ची की बात क्यू सुनी जाये,अलग - अलग स्थानो से ज्यादा प्रिय मुझे गाव था ......सुनने मे अजीब है शहर मे रहकर गांव को पसंद करना आज के हिसाब से बेतुका है । पर ये सत्य है मुझे एक संयुक्त परिवार अच्छा लगता था पर मे शायद दो बार ही संयुक्त परिवार का आनन्द ले पायी फिर घर का बटवारा हो गया सबके हिस्से ज़मीन आयी..... एक मे दो मकान बने हुए ओर दो लोगो की खाली ज़मीन । हमारे हिस्से मे भी खाली ज़मीन मिली पिता की कमायी इतनी नहीं थी की तीन बच्चो की पढायी-लिखायी खाना सब के साथ घर भी बनायें जमीन वैसे ही रही। मैं शायद छठी मे थी! सर्दी की छुट्टी मे गांव आये थे, की हमारे वापसी वाले दिन, सुबह दादा जी का स्वर्गवाश हो गया । उस समय उतनी समझ नहीं थी,पर खोने का दर्द था । क्यूंकी दादी का सुख क्या होता है वो मुझे कभी मिल ही नहीं पाया क्यूंकी वो बहुत पहले ही जा चुकी थी । अब एक और साया मुझसे दूर हो गया था , हर किसी के पास किस्से-कहानी सुनाने वाला होता है जिससे आप ज़िद करते हो । माता-पिता के अलावा जो आपको बचाने और आपकी शरारत मे साथ दे । पर मैं अपने दादा जी के साथ इसलिये भी समय नहीं बीता पायी क्यूंकी हम दोनो के बीच मिलो का फासला था, गांव और शहर का फासला जो मैं किसी को समझा नहीं सकती । बस जो मुझे एक शुन्य की ओर ले जाती है । समय के साथ सब कुछ बदल जाता है,पर जो बात एक बच्चे के दिल मे घर कर गयी थी वो था गांव की गली,लोगो का साथ मे बैठ कर हंसी मजाक,जिससे चुगली भी कहाँ जाता है । पर ये शहर की चार दिवारी कमरो से कही ज्यादा सुख दायी था । पर मे ये कह नहीं सकती थी क्यूंकी आपको समझने वाला कोई नहीं है ............।
βαβitα💕
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