हक़
अभी गाड़ी वाले को पैसे देकर उतर ही रही थी की आवाज़ आई, मां आ गई लगता है । सब्जी से भरी थैली लिए गेट खोला तो चार साल के बेटे ने कहा मां तुम्हे नहीं जाना चाहिए था। पति ने कहा मिस्टर शर्मा आ रहे है रोटी चावल दोनो बना देना। बदन मेरा 102 बुखार से तप रहा था,डॉक्टर तो भर्ती करने वाला था मैं ही उसे शाम का कह के आई हूं अभी सोच ही रही थी की ये बाते पति से कहूं ! की तभी रसोई में बर्तन का अंबार लगा था,कपड़े धूल के मशीन में पड़े थे। बाबू 2 बार खाना मांग चुका था,फटाफट पनीर की सब्जी और दूसरी और दाल चढ़ा दिया,और चावल धूल कर रख दिए,एक तरफ आटा भी मढ़ना शुरू किया । इतने में फरमाइश आई की ज़रा सिर में दर्द है एक कप चाय बना देना ।
चुपचाप रसोई में काम करते हुए मैं बस ये सोच रही थी क्या स्त्रीयों को बीमार होने का भी हक नही,अगर है तो सब जानते हुए भी पति ने ये नही पूछा की डॉक्टर ने क्या कहा । बल्कि घर के काम और मेहमान की गिनती बता दी। पर दोष उनका भी नहीं है। घर हो या समाज हर किसी ने अक्सर बेटियो को ही घर के काम सीखने को कहा है। बारिश में कपड़े भीग रहे होंगे ? पर पुरुष हमेशा पत्नी,बेटी,बहन को ही आवाज़ देगा। खुद जा कर कपड़े उठाने में उसकी पुरुषत्व कम हो जायेगी। जो पुरुष संभोग के वक्त स्त्री के कपड़े उतार सकता है वो रस्सी पे टंगे पेंटी- ब्रा उतरने में शर्मिंदगी महसूस करता है !छत पे कपड़े सुखाने हो या उतारने हो,उसके पुरुषत्व पे सवाल खड़े हो जाते है। पत्नी के वस्त्र डालते हुए किसी ने देख लिया तो? उसकी इज्ज़त मिट्टी में मिल जायेगी।
क्या रसोई में हाथ बटाने से या घर में काम करने से पुरुष छोटा हो जाता ? क्या एक दिन सिर्फ घर या ऑफिस के काम को छोड़ कर स्त्री आराम नहीं कर सकती ? क्या उसे बीमार होने का भी हक़ नहीं ?
Babita💕
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