पिंजड़ा

 




पिंज़ड़े मे कैद बुल बुल की कहानी है ,

जो उड़ना चाहे पर बेडिया बड़ी भारी है ,

         हर कोई देख कर यही कहे बड़ी नसीब वाली है,

          पर कौन जाने उसके अंतर मन की व्यथा,

ज़हा  बवंडर भारी है,

सोने का पिंज़डा,

सोने की थाली,

             पर जो नहीं है वह है आज़दी,

             न सोच की,न अपने पन की, 

              न उड़ान की,

जहा न ऐकांत न सुकुन है ,

केवल उनके विचारो की धूल है,

             कैसे जिए वो ऐसी ज़िन्दगी,

             पंख भी  है बेजान सी,

पर अब भी उम्मीद बाकी है,

कोई खोले पिंज़ड़ा ऐसी आश जागी है ,

जंक लगे पंखो की उड़ान बाकी है |


Babita

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