एक ऐसा वृक्ष बन पाऊ

  



कुछ और न सही 

  पर हर जन्म में 'मैं ' वृक्ष बनु 

स्वयं को शीतल न सही ,

   पर ओरो को शीतल कर पाऊ ,

हर दिन फल फूल से लदा रहू ,

   खुद का न सही ,

ओरो का आहार बनु ,

 सबको छाव देकर ,

धूप मैं सहूँ ,

एक ऐसा वृक्ष  बन पाऊ ,

     हर तुफान झेल जाऊ, 

हर बिजली चुप चाप सह जाऊ, 

       मेरी जाडो को कोई हिला न पाए,

किसी पर आच न आने पाए ,

    मनुष्य से लेकर हर पंछी का घर बना पाऊ ,

 अपने न सही ,किसी के काम तो आऊ ,

     खुदको रोशन न सही ,

दूसरो को रोशन कर पाऊ ,

    एक ऐसे कलम बन जाऊ, जन्म के हवन से, 

मृत्यु की श्या पे साथ जल जाऊ, 

      बस हर कष्ठ  यू ही सहते जाऊ, 

ओर किसी से एक बूंद की उम्मीद न चाहू ,


एक ऐसा वृक्ष 'मैं ' बन पाऊ |


                                                Babita 

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