नारी की संवेदना
क्या कहू मैं आज मौन हूँ ।
कूल और मर्यादा मे बंधी एक डोंर हूँ ।
कहने को किसी की पत्नी,माँ,बेटी, बहन,प्रेमिका,दोस्त हूँ ।
सन्नाटे को चिरती वो चिख हूँ।
थप्पड हूँ उन लोगो के दिलो पे,
ज़िन्होने सरे आम तमाशा देखा था।
मैं भी बेटी थी किसी की,
फिर भी मेरी लूटी हुई अबरू पर व्यंग कशा था।
तडपते हुए मुझे अपने मोटरो से बस देखा था।
जैसे छुत हूँ ,इसलिय किसी ने न छुआ था ।
एक लड़की की पीडा किसी ने न समझी थी ।
पल पल टूटती सासो की डोंर किसी ने ना थामी थी ।
ये मेरी नहीं लोगो की लाचारी थी ।
भय था पुलिस का या मर गयी इंसानियत सारी थी ।
लोगो नेआवाज़ तो उठाई थी ।
मेरी चिख को अपनी चिख बनाई थी ।
मेरी इस व्यथा पर करूणा जताई थी ।
पर आज वो आवाज भी थम गई है ।
मुझे नोंचने वालो को सजा मे बस,
कुछ दिन की कैद मिली है ।
क्या यही मेरी गलती है की मैं एक लड़की हूँ ।
क्या यही मेरी सजा है ,
क्या कहू मैं आज मौन हूँ ।
βαβitα💕
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