अतित के पन्ने
कुछ अतित के पन्ने न फटते है, न मिटते है बस वो दूसरे पन्नो के नीचे दबे होते है,कई बार हम इन्हे पलटते है,पर दोबार पढते नहीं,क्यूंकी ,बिना पढ़े हमे उस एक पन्ने का हर शब्द याद होता है।जैसे सब कुछ एक बिंब की भाति आपके सामने,पुनः घटित हो रहा है,आप स्वयं को अकेला पाते है । कई सारी बाते आपके दिमाग और दिल पे हावी हो जाती है,एक घूटन और ऊब महसूस होती है।आपको धीरे-धीरे एकांत प्रिय हो जाता है । न मित्र,न परिवार,आप अकेले रह जाते है । हजारों प्रश्न आपके सामने खडे होते है,आखिर मैं ही क्यूं? और एक लम्बी सी चुप्पी ...........ये एक पन्ना अतित को वार्तमान से जोड़ता है,एक ऐसे अतित से जहाँ लोग आपको हर रोज कटघरे मे खडा करते है,बिना पूर्ण सत्य जाने,क्यूंकी उनके लिए सत्य केवल दूसरो पर किचड़ उछालना है जो उन्होने देखा सुना वो सत्य है,पर क्या देखा हुआ असत्य नहीं हो सकता? क्या जो सुना गया वो असत्य नहीं हो सकता? पर नहीं यहाँ फैसला बिना पूछे जांचे आप पे थोप दिया जाता है ।केवल इसलिये क्यूंकी आपकी सोच दूसरो से अलग है।
प्रेम एक शब्द जो केवल एक प्रेमी,पति के लिए ही इस्तमाल होगा। क्यू ? मैं अपने माता-पिता,भाई-बहन, चाचा-चाची, भतिजा- भतिजी,दोस्त या मुझसे जुडे लोग किसी को कह नहीं सकती। आई लव यू -केवल प्रेमी के लिए प्रयोग हो ये कहाँ तक उचित है ? सोच आपकी गलत ओर कटघरे मे हम खडे हो, तीन शब्द को तोड़ मरोड़ कर दूसरो पर थोप दिया जाता है। ये बिना जाने की वो परिवार का हिस्सा है ,या गैर और गैर है भी तो आपके लिए,क्या पता आप जिससे नहीं जानते उसका सम्बंध आपसे न हो कर सामने वाले से हो । क्यू हर कोई अकेले जीने वाले पे? उसके वस्त्र ?उसकी बोली ?उसके विचार ?पर बिना जाने समझे गलत और नीच साबित कर दिया जाता है । इस बदलते समाजा मे आज भी लोग ओरो पर किचड उछाल के प्रसन्न होते है,पर स्वयं की बात आये तो नजरे चुराते है। हम खुदको सुधारे दूसरो को सुधारने से पहले। आज का मसला सोच का है, गलत सोच का इलाज नहीं सच पर आच नहीं । आधुनिक युग में / पढे़ लिखे होकर भी कुछ लोगो की सोच आज भी पिछड़ी हैं।
βαβitα💕
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