जहन में लखनऊ

 मैं जहा हूँ वहां की खासियत ही खास है,सच मे नवाबो का शहर नवाबो जैसा ही है........शांत ! अपने में खोया हुआ, ये कोई बुरी बात नहीं आज कल का जीवन कुछ ऐसा ही है, सब अपने मे ही मग्न हैं,और ऐसे व्यक्ति के पास समय नहीं होता ।  कई बार मैं घर से बाहर जब रास्ते पे घुमती हूँ,तो मुझे एक सन्नाटा पसरा नज़र आता है। यहाँ लोगो के पास वक़्त ही नहीं की, कभी वो अपनी बालकनी से देखे या झाके,पता नहीं पूरा दिन घर में रह कर क्या करते है ?  

मेरी भी दिन चरिया इनसे भिन्न नहीं है,केवल इतना की मेरे घर मे एक बालक है, जिसकी बाल लिलाओं से घर चहकता रहता है । जिसके कारण ही हम दो कदम खुले आसमान मे घुम लेते है। वैसे यहाँ के मकान टी वी सिरियल की तरह  ही दिखते है। पर इंसान रहते भी है ? ये दिखाई नहीं दिया ? अब तक,वैसे भी  लोग समय से आगे  भाग रहे है। और शायद इसलिए यहां लोग न दिखाई देते हैं न सुनाई........पर  शांति की वजह से ही मेरा एक फायदा हैं कि मैं  कुछ सोच पाती हूँ, कुछ लिख पाती हूँ अच्छा या खराब । अब ये तो पाठक पर निर्भर करता है वो इसे कैसे ग्रहन करता है । 

वैसे यहाँ मुस्कुराना,नजरे मिलाना या बात करना वरजित है क्यूंकी लोग आज लोगो को देख कर  भागते है। बात कोरोना की नहीं है,बात कुछ और है शायद यहाँ बात करने कि मनाही होगी। 

एक साल हो गया, पर यहां मैं किसी को नहीं जानती, न कोई  दोस्त है। बस कभी- कभी बच्चो की आवाज़ सुनाई देती है।हर घर में  लोग रहते है, इसका पता महरी के आने- जाने से चलता है। हर घर में अलग- अलग महरी जाती हैं, और महरी भी आपस में बात नहीं करती। शायद बोली कि वजह से क्यूंकि मुझे भी मेरे घर आने वाली महरी की बात समझ नहीं आती,इसलिए मैं  उनसे  कम बोलती हूँ............न के बराबर। 

वैसे यहां हर मकान कुछ न कुछ बया करता है, जैसे मेरे सामने का घर शांत प्रतीत होता हैं......बिल्कुल श्वेत रंग कि तरह।  कुछ घरों की छतो पर तिरंगा हैं,तो कुछ के राम के चित्र वाला झण्डा,तो कही भगवा झण्डा........... जो उनके व्यकित्तव को या पसंद को दरसाता हैं। मैंने घर के  आगे लगी नेमप्लेट पर गौर नहीं  किया,या कभी जरुरत ही नहीं पड़ी ! पर मुझे  ऐसा लगता हैं तिरंगा वाला घर किसी वकील का है। वैसे यहाँ नए मकान भी बन रहे हैं,तो कुछ पुराने मकान की मरम्मत चल रही हैं। 

जहां मैं हूँ वहां सुबह से शाम तक बस सन्नाटा पसरा हैं। और मैं  सबके बीच होते हुए भी एकांत में हूँ, शायद शुन्य में........... परिवार के साथ समय बीतता हैं, और बचे समय में  "मैं" और मेरी डायरी एक अंतहीन यात्रा पर निकल जाते हैं। ये  मेरी,मित्र भी है और हमसफ़र भी जिसने मेरी खुशी भी देखी है और गम भी। बचपन से  लेकर आज तक न "मैं" बदली न "ये"........ मैं - मेरी कलम और मेरी डायरी, और !  मन की उड़ान  ।


βαβita💕

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