निरजा (प्रेम कथा)

 बात बहुत पुरानी नही पर फिर भी काफी समय हो गया है । मेरे सामने ही तीन मौते हुई थी..........नहीं शारीरिक नहीं मानसिक मौते,तीनो का सम्बंध प्रेम से था । आज के जीवन मे ये आम बात हो गई है । हर दूसरा व्यक्ति प्रेम में है । किंतु हर कोई कितना सफल होता है । वो उसके बैंक बैलेंस, चरित्र,खूबसुरती,ज़ाति और अंत मे प्रेम और उसकी किस्मत पर निर्भर करता है ।

      निरजा मेरी सबसे करीबी सहेली और हमराज भी थी,वो अक्सर ये बात कहती थी । देखने मे बिलकुल अलग ही चेहरे पर मासूमियत,आंखे भूरी,बाल कमर को छूते हुए ह्ल्के घूनघराले,कद मे ना ज्यादा लम्बी थी ना छोटी ठीक थी,और दिल से बच्ची हर बात पे चिंता करना, रोना...........बस एक चीज थी जो उसे ख़ुशी दे जाती थी एक तो हर्ष और दूसरी उसकी पक्की सहेली गीत । मुझसे मिलने से पहले गीत थी उसकी ज़िन्दगी में पर पढा़ई के सिलसिले में कॉलेज अलग-अलग हो गए । वो अक्सर इनका ज़िक्र करती थी, और उसके गालो पर लाली और आँखो मे चमक सी आ जाती थी । 

          वो हर्ष की बाते करते थकती ही नही थी,हर्ष भी निरजा से मिलने कॉलेज या उसके घर जाते-आते रहता था । दोनों के बीच प्रेम और सम्मान भी नज़र आता था,चाहे परिवार को लेकर हो चाहे एक दूसरे को लेकर । मेरे विचार से परिवार को निरजा और हर्ष के प्रेम प्रसंग के बारे मे जानकारी नहीं थी । केवल वो निरजा का अच्छा मित्र था यही ही जानते थे । शायद हर्ष के परिवार के लोग भी यही जानते होंगे । हर्ष पढा़ई के साथ अपना बिज़नेस भी संभालता था । जहाँ तक निरजा से सुना था और निरजा भी कॉलेज के साथ-साथ बच्चो को पढ़ती भी थी ।

हर्ष और निरजा को देखकर लगता था प्यार कही न कही सच्चा और अच्छा होता है ।  निरजा अक्सर ही हर्ष की बाते करती थी,उसने मुझे बताया था उसे हर्ष ने दिल्ली हर्ट मे सबके सामने प्यार का इजहार किया था।हर्ष कभी निरजा को रोने नहीं देता था,एक दिन जब निरजा उसके दोस्तो के साथ घुमने गयी, तो उसने बताया किस तरह हर्ष चिडिया घर की टिकट लेते वक़्त अपना बटूवा वही भूल गया था। ऐसा इसलिये हुआ क्यूंकी हर्ष की निगाह निरजा से हट नहीं रही थी। और हर्ष को जब ये पता भी चला तो वो निरजा को छोड़ कर जाना नहीं चाहता था । पर जैसे ही निरजा को पता चला वो हर्ष को गेट पर ले गयी,अभी आधा ही घुम पायी थी। पर उसे हर्ष के पैसों की ज्यादा चिंता थी......वो भागते हुए गयी.......हर्ष कहता रहा कोई बात नही छोडो पर निरजा सुनती ही नहीं है किसी की...... टिकट काउटर पर जाते ही अंकल जी हमारा पर्स रह गया था । अंकल निरजा का रोता चेहरा देख कर बोले मे तो कब से इन बेटा जी को बोल रहा था पर ये सुने तब ना........ लीजिये यही रख दिया था । पर अब वो दोनो चिडिया घर के अन्दर नहीं जा सकते थे जाने के लिए टिकट लेना पड़ता और निरजा फिजूल खर्च करना पसंद नहीं था ।हर्ष के कितना कहने पर भी वो वापस घुमने नहीं गयी । 


एक और किस्सा है जो उसके जन्म दिन का है,निरजा ने बताया था की वो किस तरह हर्ष के जन्म दिन पर सरप्रायीज केक और टी-शर्ट  ले कर गई थी । पर उसका सारा मज़ा हर्ष के दोस्तो ने किरकिरा कर दिया था,निरजा का मजाक बना कर उसके गीफट को सस्ता और न जाने क्या- क्या कह कर निरजा के आँखो मे आसूँ देख हर्ष ने अपने दोस्तो को जाने को कह दिया और उसे मनाने के लिए उठक बैठक भी किया । निरजा जितनी जल्दी गुस्सा होती उतना ही जल्दी मान भी जाती थी ।

इसलिय भी हर्ष निरजा पर जान छीडकता था ।  जब निरजा का जन्म दिन आया चौबिस मई को ........तो हर्ष ने निरजा की सहेलीयो की मदद से उसके लिए सरप्राईज प्लान हुआ । पर उन दोस्तो मे गीत का ज़िक्र भी नहीं था,क्यूंकी गीत और हर्ष एक दूसरे को पसंद नहीं करते थे । हर्ष ने उस दिन निरजा को बधाई भी नहीं दी थी बस निरजा हम सब के कारण माल जाने के लिए मान गयी । उसका मन उदास था,और बेमन से चल रही थी पर जैसे ही उसने मेट्रो स्टेशन पर हर्ष को देखा मानो उसकी आंखे अब छलक जायेंगी । हम सारी लड़किया लेडिस डब्बे मे बैठ गए और निरजा- हर्ष अलग डब्बे मे चढे,भीड़ बहुत थी हर्ष निरजा को संभाले खडा था । निरजा आज से पहले कभी इतनी खुश नही दिखी, शायद इसलिये भी क्यूंकी निरजा के घर मे उसका जन्म दिन कोई नहीं मनाता था । क्यूँ पर मैने ऐसा कभी नहीं पूछा,और ये जन्म दिन भी उसका आखरी होगा ये नही पता था ..........नहीं नहीं निरजा आज भी अच्छी है पर उस साल के बाद उसने कभी जन्म दिन नहीं मनाया ............ मैं भी किस बात को लेकर बैठ गयी,निरजा और हम माल पहुचे, हर्ष ने उसके लिए गेट पर ही गुलाब के फूलो का गुल्दस्ता लिए उसके दोस्त को खडे रहने को कहाँ था निरजा फूलो को देखते ही खुश हो गयी,और हर्ष के हाथो से लेकर और खुश थी ,हम सब माल के बीचो बीच एक लाल गोल टेबल पर बैठे वहां हर्ष के ईशारा करते ही उसका दोस्त लाल रंग का केक ले आया और केक कट करके हम सब माल घुम रहे थे और फिर हर्ष उसे माल की दुकान से ऑरेंज रंग का वन पिस खारीदा जिसे पहन कर निरजा खुश भी थी पर हर्ष के पैसे खर्च होता देख उसे बंहुत बुरा लगा इसलिये खाने का सारा खर्च निरजा ने दिया वो मानी ही नहीं । हर्ष और निरजा एक दूसरे का सहारा भी थे और खुशी भी ...............उस दिन से आज तक निरजा को ऑरेन्ज रंग पसंदिता हो गया उसके पास आज भी हर्ष के दिये तोफे वैसे के वैसे ही है निरजा हर किसी के तोफे को संभाल के रखती थी । पर उसे कोई नहीं समझता सब दुख मे निरजा को याद करते,काम पड़ने पे याद करते ....बस !

बी.ए का अंतिम वर्ष था हम खुश भी थे और दुखी भी ....खुश इसलिये की अब आगे की पढा़ई य़ा नौकरी में कदम बढायेंगे और दुख इस बात का की अब हम अलग हो जायेंगे । नवम्बर का महीना था उस दिन निरजा कॉलेज नहीं आयी थी,पर पता नहीं मेरा दिल क्यूँ उसके लिए घबरा रहा था । ऐसा नहीं था की आज से पहले वो कभी कॉलेज न आयी हो.......पर हर बार न आने के एक दिन पहले खबर कर देती थी,मेसेज य़ा कॉल कर देती थी । पर इन तीन सालों मे पहली दफा निरजा ने ऐसा किया था । मैंने उसे कई दफा कॉल भी किया और मेसेज भी पर उसका कोई जवाब नहीं आया।मैंने उसकी सहेली गीत से पूछने के लिए काल किया तो दो - तीन बार उसने मेरा कॉल काट  दिया, पर अंत मे उठाया तो भी मानो बहुत गुस्से मे हो.....निरजा का नाम सुनते ही .....उसने कहाँ जाओ हर्ष से पूछो पता नहीं ऐसे इंसान के साथ निरजा कैसे रह सकती है,कहते हुए मुझे अंतिम चेतावनी देते हुए की मुझे कॉल मत करना कहकर फ़ोन रख दिया । 

अब मुझे निरजा की चिंता होने लगी हर्ष का नंबर था नहीं मेरे पास और निरजा कुछ कह भी नहीं रही थी ।  मुझे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था, मैं उसके घर भी नहीं जा सकती थी क्यूंकी उसकी दादी एक सप्ताह से हस्पताल मे भर्ती थी । मैं घर आ गयी और खाना खा के आराम करने लगी निराजा का न काल आया न मैसेज। मुझे  लगा शायद दादी की तबियत ज्यादा न खराब हो गयी हो,इसलिए उसने काल या मैसेज नहीं किया होगा। इसलिए  ज़ितनी भी पढाई कॉलेज मे हुई थी मैंने उसका फोटो खिच कर निरजा को भेज दिया । और अपने घर के काम टी. वी देखने और पढाई मे मगन हो गयी । घर पर मेरा समय माँ- पापा,भाइ और दीदी के साथ कैसे बीतता पता ही नहीं चलता । मुझे निरजा का ख्याल तक भी नहीं रहा 12 नवम्बर की सुबह मे कॉलेज के लिए तैयार हो रही थी की फ़ोन की घंटी बजी माँ ने फ़ोन उठाया पर कोई जवाब नहीं फ़ोन कट गया ।माँ ने  कहा भी देख तो किसका फोन था। मुझे लगा निराजा का होगा पर ये तो अननोन नम्बर से काल था, माँ को बताया की अननोन काल हैं।और घर से कालेज के लिए निकल गयी।  घर से बस स्टांप थोडी दूरी पर था मैं पैदल हर रोज वहां तक जाकर कॉलेज के लिए बस पकडती थी। अभी भी मैं बस स्टांप से कुछ ही दूरी पे थी की मेरा फ़ोन बजा देखा तो कोई अननोन नंबर था। फ़ोन उठाते ही कोई लड़का मुझे हजार गालिया दिये जा रहा है।

  सुनते ही मुझे गुस्सा आया और मैने भी उसे भला बुरा कहना शुरू कर दिया, और मैने फ़ोन काट दिया दौबारा फ़ोन बजा,उसी नम्बर से सुबह- सुबह मेरा सारा मुड उस एक कॉल ने खराब कर दिया था । मैने फ़ोन उठाया और कुछ कहने ही जा रही थी की सामने से आवाज़ आयी......हैलो मे हर्ष ........मांफ कर दीजिये अभी आपके साथ जो भी बत्तमिजी की पर ये सब निरजा के कारण हुआ है । आप उसे समझाये इतना कहकर फ़ोन रख दिया।

मैं गुस्से मे थी एक तो बिना किसी बात के मैंने बहुत कुछ सुन लिया था । क्लास के लिए लेट ना हो जाऊ इसलिये पहली बस पकड़ के सत्यनिकेत उतर गयी। यहाँ से भी मुझे पैदल ही कॉलेज तक जाना पड़ता था। वैसे तो मैं निरजा का इंतजार करती थी। पर उसकी कोई खबर न थी इसलिये मैं निकल गयी । मैं अब भी गुस्से में थी, मन कर रहा था हर्ष को थप्पड़ लगाऊ और निरजा से  पूछु क्यूं उसने मेरा नम्बर दिया। ये सब सोचते हुए जा ही रही थी, कि मेरा ध्यान एक  रास्ते के किनारे बैठी एक लड़की पे गया ये आम बात थी एक लड़की दूसरी लड़की के इंतजार मे अक्सर रुक जाया करती थी,गर्ल कॉलेज जो था । पर दूर से वो आम लड़की जैसी लग रही थी । पर दूरी कम होने पर पता चला वो निरजा थी..... जो बस रोये जा रही थी, मानो इतना रो चुकी है की आँख फूली हुई लाल, नाक लाल और मुझे देखते ही वो मुझसे लिपट के रोने लगी। मैंने उससे पूछा दादी ठीक है न ? उसने हाँ मैं सर हिलाया, मैंने पूछा फिर क्यूँ पगलो जैसी हरकत कर रही हो? उसने कहाँ हाँ मे पागल ही तो हूँ, इतने सालो से पागल ही थी। मुझे उसकी ये बाते समझ नहीं आयी मैने कहाँ साफ - साफ कहो । वो बस इतना कह कर रोये जा रही थी। मैने अपने बेग से बोटल निकाला उसे पानी पीने को दिया,और कहाँ चलो शांति से बताओ। 

पहले उसने मुझे काफी देर देखा फिर बोली .......जानती हो काफी समय से मेरे और हर्ष के बीच लडाई हो रही है,हर छोटी बात को लेकर .....काफी दिन से हर्ष मेरा फ़ोन नही उठा रहे थे । जब कॉल करो उनके दोस्त उठाते थे मेसेज का भी रीपलाय नहीं आता था । मैने ये सारी बाते गीत को बातायी और कहाँ की कॉल कर के हर्ष को मनाये क्यूंकी मेरा कॉल उसके दोस्त उठाते है । पता नही हर्ष और गीत के बीच क्या बात हुई वो मुझसे रिश्ता तोड़ना चाहते है । और दूसरी और गीत कह रही है हर्ष ने उसे गाली दी है ये बात मैं मान नहीं सकती । निरजा की सारी बात सुनकर मैने पेहले अपना फ़ोन दिखा के पूछा क्या ये हर्ष का नम्बर है । उसने हाँ कहाँ सुबह की सारी बात बातायी की हर्ष ने मुझे भी अपशब्द कहे है । निरजा मौन बैठी रही फिर मुझसे माफी मांगते हुए कही गलती हो गयी मैने तुम्हारा नम्बर दे दिया था ।  फिर घंटो चुप फिर निरजा कहती क्या तुम हर्ष को कॉल  करोगी वो मेरा फ़ोन नहीं उठा रहा । मैने उसे फ़ोन दिया बस लास्ट बार पर फिर वही हुआ हर्ष के दोस्त ने फ़ोन उठा के दो मिनट मे फ़ोन रख दिया । निरजा फिर रोने लगी फिर उसने मेरी तरफ आशा भरी निगाह से देखा और कहाँ क्या तुम मेरे साथ हर्ष से मिलने चलोगी ? मैं उसे मना न कर पायी पर जैसे ही हम हर्ष के घर पहुचे तो पता चला उनका सारा परिवार आगर गया है केवल हर्ष है । हमने घंटी बजयी दरवाजा खुला हर्ष ने हमे देखते ही नीचे जाने को कहाँ निरजा हर्ष को देखती रह गयी । ऐसा उसके साथ पहली बार हो रहा था ,मैं निरजा के साथ नीचे पार्क मे चली गयी। लग भग दो घंटे बीत गए फिर हर्ष आया ,'हर्ष और निरजा कुछ दूरी पे बात कर रहे थे ......पर उनकी बाते मुझे साफ सुनायी दे रही थी । निरजा अपने रिश्ते को बचाना चाहती थी,पर हर्ष तोड़ना........बाते इतनी बढी की निरजा हर्ष के पैर पकड के रो रही थी,माफी मांग रही थी एक ऐसी गलती की जो उसने की भी नहीं थी । शायद हर्ष के जगह पत्थर भी होता तो निरजा की तडप आंसू देख के माफ कर देता। पर हर्ष टस से मस न हुआ ।

मैने कहाँ चलो निरजा यहाँ से तमासा बन गया था,प्यार का और निरजा के आसूँ  आज भी साफ दिखते है ........मैने निरजा को समझा बुझा के उसके घर भेजा और मैं भी घर आ गयी ।अभी रात के आठ ही बजे थे की निरजा ने बात की उसकी दादी का स्वर्गवास हो गया । निरजा ने ये बताते हुए कहाँ प्लीस हर्ष को ये बता देना और मुझसे बात करने को भी कहना मैने हर्ष का नम्बर सेव किया और मेसेज भेज दिया। पर अब भी हर्ष के कानो पर जू न रेंगी हो । व्ट्सप्प पर देखा की महासय जी किसी और के गले मे हाथ डाले फोटो डाले है । पूछने पर कहाँ गया बहन है,शायद ही कोई बहन शब्द का ऐसा दुरूपर्योग करे। ऐसा इसलिये कह रही हूँ क्यूंकी जिसे हर्ष ने बहन बोला वो उनकी नयी गर्लफ्रेंड थी । इसका पता निरजा को कुछ दिन बाद ही चल गया । पर फिर भी वो हर्ष को नहीं भूला पायी ना किसी को अपने जीवन मे आने दिया.......... वो हर रोज हर्ष को मेसेज य़ा कॉल करके गीडगीडाती पर हर्ष को निरजा दिखायी नहीं देती न उसका रोना,मात्र दो महीने ही हुए थे की हर्ष की नयी गर्लफ्रेन्ड उन्हे छोड़ के जा चुकी थी ...........हर्ष को तब शायद पता चला हो विश्वास और दिल टूटता है तो कैसा लगता है ...............मुझे आज भी निरजा का चेहर याद है हँसने वाला चेहरा अचानक से मुरझा गया आठ साल का रिश्ता उसका और हर्ष का बस यूं ही टूट गया । आज भी निरजा अकेले है क्यूंकी अब दौबारा किसी पे विश्वास करना उसके बस मे न था,गीत ने भी निरजा से दोस्ती तोड़ दी और उसका खुद पे से भी विश्वास उठ गया ..........................।

βαβitα💕

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