बोझ ☻️



कुछ अंदर - अंदर टूटा मुझमें ,ऐसी आवाज़ हुई,
स्तब्ध खड़ी थी मैं,जब किचड़  की बौछार हुई,

अंतर  मन के हजार सवाल,फिर भी शुन्य पड़ी  थी मैं,
अपने दिये जवाब पे, निशब्द वही खडी थी मैं,

ज्वाला सा अंदर फूट  पड़ा,अंतर मन टूट पड़ा,
अपना कहने को केवल  शम्भू था खड़ा,

अश्को से आंसू  बेहते गए,निरलज,कुल्टा सुनते रहे,
बस अपराध इतना था,पुरूष के पौरूष को ललकारा था,

हां के बदले ना का दामन थामा था,
अपने ही कुल मे एक पहचान मिली,

ये पुत्री कैसे  ग्रभ  मे पली,
घाव  सा सीने  मे बन पड़ा,

धीरे - धीरे सब कोई छोड़ चला
एक बोझ होने का एहसास .............

माया💕( एक चुप्पी )💕



 

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