चलो न फिर से बचपन को ढूंढते हैं!
चलो न फिर से बचपन को ढूंढते हैं!
खुदकी चंचलता चपलता को ढूंढते हैं,
वो अल्हड़ बचपन हमारा,
न फोन,न टैबलेट,न इंडोर गेम का ज़माना,
वो स्कूल का दिन सुहाना,
हर रविवार को पहाड़ों पे पिकनिक मानना,
याद है? मेघालय के वादियों में वक्त बिताना
दोस्तों के साथ मां के हाथ के पराठे आचार को खाना,
जंगली पौधों को तोड़ कर उसे औषधि बताना,
याद है? छोटी - छोटी बात पर लड़ जाना,
चारों तरफ हरियाली और वो शिलांग की ऊंचे पिक का नजारा,
कभी झील,कभी नदी,कभी झरना देखने का बहाना,
ट्यूशन के बाद लंबी सैर पर जाना,
याद है? फ्रेंडशिप डे,और न्यू ईयर पर कार्ड देना,
और हा दिवाली - छठ पर धूम मचाना
ठंड के मौसम में भी ठंडे पानी में खड़ा होना,
वो एक साथ मंदिर जाना, पंडित जी के देने से पहले प्रसाद ले जाना,
आलू मुरही और चना 2 -2 के सिक्कों को 5 बताके लेना
उफ कितना कुछ है कहने को बाकी
कैसे वापस लाऊं वो बचपन की झांकी ........
बबिता💕
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