थप थप थप थप ...............
चलते - चलते जोर से एक आवाज़ आई देखो आज फिर पूजा की मां बिना बोले चली गई, इसको ऐसे ही बाहर छोड़ गई,बिचारी बच्ची सो गई है,पता नहीं कितना उसको जल्दी रहता है । एक आवाज़ दे नहीं सकती,आने दो उसको जरा !
सब्बू सब्बू ....बिचारा छोटा सा बच्ची कितना गहरी नींद में है, कारा (खासी भाषा का नाम) कारा कहा है दरवाज़ा खोल जल्दी, हां मां आई ......कहा था तू देखा नहीं पूजा का मां आज फिर इसको दरवाज़े पे ऐसे ही बिठा के चली गई बोलने में पता नहीं क्या जाता है,बोला था तुझसे ? नहीं। चल एक कप चाय बना दे सर दर्द हो रहा है, ठीक है...........
दरवाजा खोलने की आवाज़ पूजा जा कारा दीदी के घर से सब्बू को लेते आ .....
पूजा दौड़ते हुए नानी नानी नानी खोलो दरवाज़ा, हा पूजा आ गया स्कूल से हा नानी सब्बू को भेज दो नानी मम्मी बुला रही है,सब्बू तो है नही यहां...........पीछे से मां की आवाज़ जानती हूं आप ही रखा है बाहर से उठा के आंटी भेज दो उसको खेल रही है क्या?
आंटी -: पूजा की मां हमसे मत बोलो हमको नहीं पता,
पूजा की मां -: जनता है हम आप ही रखा है यहां गेट के अंदर वैसे भी कोई नही आ सकता ।
पूजा -: हां कारा मासी के बेड पे सो रही है ,
आंटी -: ये ठीक बात नही है मैं बाहर था पर कारा तो घर में था बोल के क्यों नहीं गया तुम बिचारा बच्ची सो गया था,हम नही देखता तो वैसे ही धूप लगता उसको बोलो?
पूजा की मां - सॉरी आंटी मेरे को लगा कारा घर पे नही है दुकान पे है,पर आपकी काम वाली को बोला था और मामा को भी ।
आंटी -: मामा
मामा -: जी आंटी
आंटी -: कहा था तुम सब्बू को देखा क्यूं नही ?
मामा -: सॉरी आंटी आप गार्डन को साफ करने का कह गया था वही कर रहा था,एक बार देखा था तो सब्बू खेल रहा था दरवाजे के सामने,तो हम फिर गार्डन में आ गया,और दुकान से लड़का आया था कहा कारा ने समान उतारने के लिए बुलाया है तो हम चला गया, और दीदी आया तो हम बताना भूल गया ।
आंटी -: अच्छा ठीक है तुम जाओ कल सुबह आना।
मामा -: ठीक है
पूजा की मां - आंटी मैं उठा लेती हूं सब्बू को
आंटी -: रहने दो सो के उठेगा तो मैं भेज दूंगी
पूजा की मां -: हंसते हुए ...........ठीक है आंटी ।
आंटी -: ठीक - ठीक कहता है और रोज ऐसा ही करता है,आओ बैठो।
पूजा की मां -: नही आंटी अभी खाना खिला के सुला दू वरना शाम को सोने लगेगे दोनो पूजा चल .......
कारा - दीदी वो तो चली गई ।
पूजा की मां - अच्छा।
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